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उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद


गोदान

गोविन्दी ने कहा -- मैं तो ताँगा लायी हूँ।
'ताँगे को यहीं से विदा कर देता हूँ। '
मेहता ताँगे के पैसे चुकाकर लौटे, तो गोविन्दी ने कहा -- लेकिन आप मुझे कहाँ ले जायँगे?
मेहता ने चौंककर पूछा -- क्यों, आपके घर पहुँचा दूँगा।
'वह मेरा घर नहीं है मेहताजी! '
'और क्या मिस्टर खन्ना का घर है? '
'यह भी क्या पूछने की बात है?
'अब वह घर मेरा नहीं रहा। जहाँ अपमान और धिक्कार मिले, उसे मैं अपना घर नहीं कह सकती, न समझ सकती हूँ। '
मेहता ने दर्द-भरे स्वर में जिसका एक-एक अक्षर उनके अन्तःकरण से निकल रहा था, कहा -- नहीं देवीजी, वह घर आपका है, और सदैव रहेगा। उस घर की आपने सृष्टि की है, उसके प्राणियों की सृष्टि की है, और प्राण जैसे देह का संचालन करता है। प्राण निकल जाय, तो देह की क्या गति होगी? मातृत्व महान् गौरव का पद है देवीजी! और गौरव के पद में कहाँ अपमान और धिक्कार और तिरस्कार नहीं मिला? माता का काम जीवन-दान देना है। जिसके हाथों में इतनी अतुल शक्ति है, उसे इसकी क्या परवाह कि कौन उससे रूठता है, कौन बिगड़ता है। प्राण के बिना जैसे देह नहीं रह सकती, उसी तरह प्राण को भी देह ही सबसे उपयुक्त स्थान है। मैं आपको धर्म और त्याग का क्या उपदेश दूँ? आप तो उसकी सजीव प्रतिमा हैं। मैं तो यही कहूँगा कि ...
गोविन्दी ने अधीर होकर कहा -- लेकिन मैं केवल माता ही तो नहीं हूँ, नारी भी तो हूँ?
मेहता ने एक मिनट तक मौन रहने के बाद कहा -- हाँ, हैं; लेकिन मैं समझता हूँ कि नारी केवल माता है, और इसके उपरान्त वह जो कुछ है, वह मातृत्व का उपक्तम मात्र। मातृत्व संसार की सबसे बड़ी साधना, सबसे बड़ी तपस्या, सबसे बड़ा त्याग और सबसे महान् विजय है। एक शब्द में उसे लय कहूँगा -- जीवन का, व्यक्तित्व का और नारीत्व का भी। आप मिस्टर खन्ना के विषय में इतना ही समझ लें कि वह अपने होश में नहीं हैं। वह जो कुछ कहते हैं या करते हैं, वह उन्माद की दशा में करते हैं; मगर यह उन्माद शान्त होने में बहुत दिन न लगेंगे, और वह समय बहुत जल्द आयेगा, जब वह आपको अपनी इष्टदेवी समझेंगे।
गोविन्दी ने इसका कुछ जवाब न दिया। धीरे-धीरे कार की ओर चली। मेहता ने बढ़कर कार का द्वार खोल दिया। गोविन्दी अन्दर जा बैठी। कार चली; मगर दोनों मौन थे। गोविन्दी जब अपने द्वार पर पहुँचकर कार से उतरी, तो बिजली के प्रकाश में मेहता ने देखा, उसकी आँखें सजल हैं। बच्चे घर में से निकल आये और ' अम्माँ-अम्माँ ' कहते हुए माता से लिपट गये। गोविन्दी के मुख पर मातृत्व की उज्ज्वल गौरवमयी ज्योति चमक उठी। उसने मेहता से कहा -- इस कष्ट के लिए आपको बहुत धन्यवाद! -- और सिर नीचा कर लिया। आँसू की एक बूँद उसके कपोल पर आ गिरी थी। मेहता की आँखें भी सजल हो गयीं -- इस ऐश्वर्य और विलास के बीच में भी यह नारी-हृदय कितना दुखी है!

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